Thursday, July 18, 2013

085-लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्त: से

लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्त: से, यक ख़्वाब-ए-ख़ुश, वले
ग़ालिब, यह ख़ौफ़ है, कि कहाँ से अदा करूँ

ख़ुश वहशते कि `अर्ज़-ए-जुनून-ए-फ़ना करूँ
जूं गर्द-ए-राह जाम:-ए-हस्ती क़बा करूँ

आ अय बहार-ए-नाज़ कि तेरे ख़िराम से
दस्तार गिरद-ए-शाख़-ए-गुल-ए-नक़्श-ए-पा करूँ

ख़ुश उफ़तादगी कि ब सहरा-ए-इंतज़ार
जूं जाद:ह गर्द-ए-रह से निगह सुरम:-सा करूँ

सब्र और यह अदा कि दिल आवे असीर-ए-चाक
दर्द और यह कमीं कि रह-ए-नाल: वा करूँ

वह बे-दिमाग़-ए-मिन्नत-ए-इक़बाल हूँ कि मैं
वहशत ब दाग़-ए-साय:-ए-बाल-ए-हुमा करूँ

वह इलतिमास-ए-लज़्ज़त-ए-बे-दाद हूँ कि मैं
तेग़-ए-सितम को पुश्त-ए-ख़म-ए-इल्तिजा करूँ

वह राज़-ए-नाल: हूँ कि ब शर्ह-ए-निगाह-ए-`अज्ज़
अफ़शाँ ग़ुबार-ए-सुर्म: से फ़र्द-ए-सदा करूँ

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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