Thursday, July 18, 2013

086-वह फ़िराक़ और वह विसाल कहाँ

वह फ़िराक़ और वह विसाल कहाँ
वह शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल कहाँ

फ़ुर्सत-ए-कार-ओ-बार-ए-शौक़ किसे
ज़ौक़-ए-नज़्ज़ार:-ए-जमाल कहाँ

दिल तो दिल, वह दिमाग़ भी न रहा
शोर-ए-सौदा-ए-ख़त्त-ओ-ख़ाल कहाँ

थी वह इक शख़्स के तसव्वुर से
अब वह र`अनाई-ए-ख़याल कहाँ

ऐसा आसाँ नहीं, लहू रोना
दिल में ताक़त, जिगर में हाल कहाँ

हम से छूटा क़िमार ख़ान:-ए-`इश्क़
वाँ जो जावें, गिरह में माल कहाँ

फ़िक़्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और यह वबाल कहाँ

मुज़महिल हो गए क़ुवा, ग़ालिब
वह `अनासिर में ए`तिदाल कहाँ

बोसे में वह मुज़ाइक़ह न करे
पर मुझे ताक़त-ए-सवाल कहाँ

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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