Thursday, July 18, 2013

094-मत मर्दुमक-ए-दीद: में

मत मर्दुमक-ए-दीद: में समझो यह निगाहें
हैं जम`अ सुवैदा-ए-दिल-ए-चश्म में आहें

किस दिल प है `अज़्म-ए-सफ़-ए-मिज़हगान-ए-ख़ुद-आरा
आईने के पा-याब से उतरी हैं सिपाहें

दैर-ओ-हरम आईन:-ए-तकरार-ए-तमन्ना
वामान्दगी-ए-शौक़ तराशे है पनाहें

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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