Thursday, July 18, 2013

095-बर्शकाल-ए-गिरिय:-ए-`आशिक़ है

बर्शकाल-ए-गिरिय:-ए-`आशिक़ है, देखा चाहिये
खिल गई मानिन्द-ए-गुल, सौ जा से दीवार-ए-चमन

उल्फ़त-ए-गुल से ग़लत है दा`वा-ए-वारस्तगी
सर्व है बावस्फ़-ए-आज़ादी गिरफ़्तार-ए-चमन

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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