Thursday, July 18, 2013

096-`इश्क़ तासीर से नौमेद नहीं

`इश्क़ तासीर से नौमेद नहीं
जाँ सिपारी शजर-ए-बेद नहीं

सल्तनत दस्त ब दस्त आई है
जाम-ए-मै, ख़ातिम-ए-जमशेद नहीं

है तजल्ली तिरी सामान-ए-वुजूद
ज़र्र: बे परतव-ए-ख़ुरशेद नहीं

राज़-ए-मा`शूक़ न रुस्वा हो जाए
वर्न: मर जाने में कुछ भेद नहीं

गर्दिश-ए-रंग-ए-तरब से डर है
ग़म-ए-महरूमी-ए-जावेद नहीं

कहते हैं, जीते हैं उम्मीद प लोग
हम को जीने की भी उम्मेद नहीं

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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