जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं
ख़ियाबाँ ख़ियाबाँ इरम देखते हैं
दिल-आशुफ़्तगाँ ख़ाल-ए-कुंज-ए-दहन के
सुवैदा में सैर-ए-`अदम देखते हैं
तिरे सर्व-ए-क़ामत से, यक क़द्द-ए-आदम
क़यामत के फ़ितने को, कम देखते हैं
तमाशा कि अय महव-ए-आईन:-दारी
तुझे किस तमन्ना से हम देखते हैं
सुराग़-ए-तफ़-ए-नाल: ले, दाग़-ए-दिल से
कि शब रौ का नक़्श-ए-क़दम देखते हैं
बना कर फ़क़ीरों का हम भेस ग़ालिब
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते हैं
-मिर्ज़ा ग़ालिब
ख़ियाबाँ ख़ियाबाँ इरम देखते हैं
दिल-आशुफ़्तगाँ ख़ाल-ए-कुंज-ए-दहन के
सुवैदा में सैर-ए-`अदम देखते हैं
तिरे सर्व-ए-क़ामत से, यक क़द्द-ए-आदम
क़यामत के फ़ितने को, कम देखते हैं
तमाशा कि अय महव-ए-आईन:-दारी
तुझे किस तमन्ना से हम देखते हैं
सुराग़-ए-तफ़-ए-नाल: ले, दाग़-ए-दिल से
कि शब रौ का नक़्श-ए-क़दम देखते हैं
बना कर फ़क़ीरों का हम भेस ग़ालिब
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते हैं
-मिर्ज़ा ग़ालिब
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