Thursday, July 18, 2013

108-नहीं कि मुझ को क़यामत का

नहीं कि मुझ को क़यामत का ए`तिक़ाद नहीं
शब-ए-फ़िराक़ से, रोज़-ए-जज़ा, ज़ियाद नहीं

कोई कहे, कि शब-ए-मह में क्या बुराई है
बला से, आज अगर दिन को अब्र-ओ-बाद नहीं

जो आऊँ सामने उन के, तो मरहबा न कहें
जो जाऊँ वाँ से कहीं को, तो ख़ैरबाद नहीं

कभी जो याद भी आता हूँ मैं, तो कहते हैं
कि, आज बज़्म में कुछ फ़ितन:-ओ-फ़साद नहीं

`अलाव: `ईद के मिलती है, और दिन भी, शराब
गदा-ए-कूच:-ए-मैख़ान: ना-मुराद नहीं

जहाँ में हो ग़म-ओ-शादी बहम, हमें क्या काम
दिया है हम को ख़ुदा ने वह दिल, कि शाद नहीं

तुम उन के वा`दे का ज़िक्र उन से क्यों करो, ग़ालिब
यह क्या, कि तुम कहो, और वह कहें, कि याद नहीं

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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