Thursday, July 18, 2013

109-तेरे तौसन को सबा बाँधते हैं

तेरे तौसन को सबा बाँधते हैं
हम भी मज़मूँ की हवा बाँधते हैं

आह का किसने असर देखा है
हम भी एक अपनी हवा बाँधते हैं

तेरी फ़ुर्सत के मुक़ाबिल, अय `उम्र
बर्क़ को पा ब हिना बाँधते हैं

क़ैद-ए-हस्ती से रिहाई, मा`लूम
अश्क को बे सर-ओ-पा बाँधते हैं

नश्श:-ए-रंग से, है वाशुद-ए-गुल
मस्त कब बन्द-ए-क़बा बाँधते हैं

ग़लतीहा-ए-मज़ामीं मत पूछ
लोग, नाले को रसा बाँधते हैं

अहल-ए-तदबीर की वामाँदगियाँ
आबिलों पर भी हिना बाँधते हैं

साद: पुरकार हैं ख़ूबाँ, ग़ालिब
हम से पैमान-ए-वफ़ा बाँधते हैं

पाँव में जब वह हिना बाँधते हैं
मेरे हाथों को जुदा बाँधते हैं

हुस्न-ए-अफ़सुर्द:-दिलीहा रंगीं
शौक़ को पा ब हिना बाँधते हैं

क़ैद में भी है असीरी आज़ाद
चश्म-ए-ज़ंजीर को वा बाँधते हैं

शैख़ जी का`बे का जाना मा`लूम
आप मस्जिद में गधा बाँधते हैं

किस का दिल ज़ुल्फ़ से भागा कि असद
दस्त-ए-शान: ब क़ज़ा बाँधते हैं

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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