नहीं है ज़ख़्म कोई बख़िये के दरख़ुर, मिरे तन में
हुआ है तार-ए-अश्क-ए-यास रिश्त: चश्म-ए-सोज़न में
हुई है मान`-ए-ज़ौक़-ए-तमाशा, ख़ान:-वीरानी
कफ़-ए-सैलाब बाक़ी है, बरंग-ए-पंब: रौज़न में
वदी`अत ख़ान:-ए-बेदाद-ए-काविशहा:-ए-मिश़गाँ हूँ
नगीन-ए-नाम-ए-शाहिद है मिरा हर क़तर: ख़ूँ तन में
बयाँ किस से हो, ज़ुल्मत गुस्तरी मेरे शबिस्ताँ की
शब-ए-मह हो, जो रख दूँ पंब: दीवारों के रौज़न में
निकोहिश मान`-ए-बेरब्ती-ए-शोर-ए-जुनूँ आई
हुआ है ख़न्द:-ए-अहबाब बख़िय:, जैब-ओ-दामन में
हुए उस मेहर वश के जल्व:-ए-तिम्साल के आगे
पर अफ़शाँ जौहर आईने में, मिस्ल-ए-ज़र्र: रौज़न में
न जानूँ नेक हूँ या बद हूँ, पर सोहबत मुख़ालिफ़ है
जो गुल हूँ तो हूँ गुलख़न में, जो ख़स हूँ तो हूँ गुलशन में
हज़ारों दिल दिये, जोश-ए-जुनून-ए-`इश्क़ ने मुझ को
सियह हो कर सुवैदा हो गया हर क़तर: ख़ूँ तन में
असद, ज़िन्दानी-ए-तासीर-ए-उल्फ़तहा-ए-ख़ूबाँ हूँ
ख़म-ए-दस्त-ए-नवाज़िश हो गया है तौक़ गर्दन में
-मिर्ज़ा ग़ालिब
हुआ है तार-ए-अश्क-ए-यास रिश्त: चश्म-ए-सोज़न में
हुई है मान`-ए-ज़ौक़-ए-तमाशा, ख़ान:-वीरानी
कफ़-ए-सैलाब बाक़ी है, बरंग-ए-पंब: रौज़न में
वदी`अत ख़ान:-ए-बेदाद-ए-काविशहा:-ए-मिश़गाँ हूँ
नगीन-ए-नाम-ए-शाहिद है मिरा हर क़तर: ख़ूँ तन में
बयाँ किस से हो, ज़ुल्मत गुस्तरी मेरे शबिस्ताँ की
शब-ए-मह हो, जो रख दूँ पंब: दीवारों के रौज़न में
निकोहिश मान`-ए-बेरब्ती-ए-शोर-ए-जुनूँ आई
हुआ है ख़न्द:-ए-अहबाब बख़िय:, जैब-ओ-दामन में
हुए उस मेहर वश के जल्व:-ए-तिम्साल के आगे
पर अफ़शाँ जौहर आईने में, मिस्ल-ए-ज़र्र: रौज़न में
न जानूँ नेक हूँ या बद हूँ, पर सोहबत मुख़ालिफ़ है
जो गुल हूँ तो हूँ गुलख़न में, जो ख़स हूँ तो हूँ गुलशन में
हज़ारों दिल दिये, जोश-ए-जुनून-ए-`इश्क़ ने मुझ को
सियह हो कर सुवैदा हो गया हर क़तर: ख़ूँ तन में
असद, ज़िन्दानी-ए-तासीर-ए-उल्फ़तहा-ए-ख़ूबाँ हूँ
ख़म-ए-दस्त-ए-नवाज़िश हो गया है तौक़ गर्दन में
-मिर्ज़ा ग़ालिब
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