दिल ही तो है, न संग-ओ-ख़िश्त, दर्द से भर न आए क्यों
रोएंगे हम हज़ार बार, कोई हमें सताए क्यों
दैर नहीं, हरम नहीं, दर नहीं, आस्ताँ नहीं
बैठे हैं रहगुज़र प हम, ग़ैर हमें उठाए क्यों
जब वह जमाल-ए-दिल फ़रोज़, सूरत-ए-मेहर-ए-नीमरोज़
आप ही हो नज़ार:-सोज़, पर्दे में मुंह छुपाए क्यों
दश्न:-ए-ग़मज़:, जाँ सिताँ नावुक-ए-नाज़ बे पनाह
तेरा ही `अक्स-ए-रुख़ सही, सामने तेरे आए क्यों
क़ैद-ए-हयात-ओ-बन्द-ए-ग़म, अस्ल में दोनों एक हैं
मौत से पहले, आदमी ग़म से निजात पाए क्यों
हुस्न और उस प हुस्न-ए-ज़न, रह गई बुलहवस की शर्म
अपने प ए`तिमाद है, और को आज़माए क्यों
वाँ वह ग़ुरूर-ए-`इज़्ज़-ओ-नाज़, याँ यह हिजाब-ए-पास-ए-वज़`अ
राह में हम मिलें कहाँ, बज़्म में वह बुलाए क्यों
हाँ वह नहीं ख़ुदा परस्त, जाओ वह बेवफ़ा सही
जिस को हो दीन-ओ-दिल `अज़ीज़, उस की गली में जाए क्यों
ग़ालिब-ए-ख़स्त: के बग़ैर, कौन-से काम बन्द हैं
रोइये ज़ार ज़ार क्या, कीजिये हाय हाय क्यों
-मिर्ज़ा ग़ालिब
रोएंगे हम हज़ार बार, कोई हमें सताए क्यों
दैर नहीं, हरम नहीं, दर नहीं, आस्ताँ नहीं
बैठे हैं रहगुज़र प हम, ग़ैर हमें उठाए क्यों
जब वह जमाल-ए-दिल फ़रोज़, सूरत-ए-मेहर-ए-नीमरोज़
आप ही हो नज़ार:-सोज़, पर्दे में मुंह छुपाए क्यों
दश्न:-ए-ग़मज़:, जाँ सिताँ नावुक-ए-नाज़ बे पनाह
तेरा ही `अक्स-ए-रुख़ सही, सामने तेरे आए क्यों
क़ैद-ए-हयात-ओ-बन्द-ए-ग़म, अस्ल में दोनों एक हैं
मौत से पहले, आदमी ग़म से निजात पाए क्यों
हुस्न और उस प हुस्न-ए-ज़न, रह गई बुलहवस की शर्म
अपने प ए`तिमाद है, और को आज़माए क्यों
वाँ वह ग़ुरूर-ए-`इज़्ज़-ओ-नाज़, याँ यह हिजाब-ए-पास-ए-वज़`अ
राह में हम मिलें कहाँ, बज़्म में वह बुलाए क्यों
हाँ वह नहीं ख़ुदा परस्त, जाओ वह बेवफ़ा सही
जिस को हो दीन-ओ-दिल `अज़ीज़, उस की गली में जाए क्यों
ग़ालिब-ए-ख़स्त: के बग़ैर, कौन-से काम बन्द हैं
रोइये ज़ार ज़ार क्या, कीजिये हाय हाय क्यों
-मिर्ज़ा ग़ालिब
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Jagjit Singh/ जगजीत सिंह
Shafqat Amanat Ali/ शफ़क़त अमानत अली
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