Thursday, July 18, 2013

118-हसद से दिल अगर अफ़सुर्द: है

हसद से दिल अगर अफ़सुर्द: है, गर्म-ए-तमाशा हो
कि चश्म-ए-तंग, शायद, कसरत-ए-नज़्ज़ार: से वा हो

बक़द्र-ए-हसरत-ए-दिल, चाहिये ज़ौक़-ए-म`आसी भी
भरूं यक गोश:-ए-दामन, गर आब-ए-हफ़्त दरिया हो

अगर वह सर्व क़द, गर्म-ए-ख़िराम-ए-नाज़ आ जावे
कफ़-ए-हर ख़ाक-ए-गुलशन शक्ल-ए-क़ुमरी नाल:-फ़र्सा हो

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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