Thursday, July 18, 2013

142-गर ख़ामुशी से फ़ायद:

गर ख़ामुशी से फ़ायद:, इख़फ़ा-ए-हाल है
ख़ुश हूँ, कि मेरी बात समझनी मुहाल है

किस को सुनाऊँ हसरत-ए-इज़हार का गिला
दिल फ़र्द-ए-जम`-ओ- ख़र्च-ए-ज़बाँहा-ए-लाल है

किस परदे में है आइन:-परदाज़, अय ख़ुदा
रहमत, कि `उज़्रख़्वाह-ए-लब-ए-बेसवाल है

हय हय, ख़ुदा न ख़्वास्त: वह और दुश्मनी
अय शौक़-ए-मुनफ़`इल, यह तुझे क्या ख़याल है

मिश्कीं लिबास-ए- का`ब:, `अली के क़दम से जान
नाफ़-ए-ज़मीन है, न कि नाफ़-ए-ग़ज़ाल है

वहशत प मेरी `अर्स:-ए-आफ़ाक़ तंग था
दरिया ज़मीन को `अरक़-ए- इन्फ़ि`आल है

हस्ती के मत फ़रेब में आजाइयो असद
`आलम तमाम हल्क़:-ए-दाम-ए-ख़याल है

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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