Thursday, July 18, 2013

147-रहम कर ज़ालिम

रहम कर ज़ालिम, कि क्या बूद-ए-चराग़-ए-कुश्त: है
नब्ज़-ए-बीमार-ए-वफ़ा, दूद-ए-चराग़-ए-कुश्त: है

दिल्लगी की आरज़ू, बेचैन रखती है हमें
वर्न: याँ बेरौनक़ी सूद-ए-चराग़-ए-कुश्त: है

नश्श:-ए-मै बे-चमन दूद-ए-चराग़-ए-कुश्त: है
जाम दाग़-ए-शो’ल:-अनदूद-ए-चराग़-ए-कुश्त: है

दाग़-ए-रब्त-ए-हम हैं अहल-ए-बाग़ गर गुल हो शहीद
लाल: चश्म-ए-हसरत-आलूद-ए-चराग़-ए-कुश्त: है

शोर है किस बज़्म की `अर्ज़-ए-जराहत-ख़ान: का
सुबह यक-बज़्म-ए-नमक सूद-ए-चराग़-ए-कुश्त: है

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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