Thursday, July 18, 2013

148-चश्म-ए-ख़ूबाँ ख़ामुशी में भी

चश्म-ए-ख़ूबाँ ख़ामुशी में भी नवा पर्दाज़ है
सुर्म:, तो कहवे, कि दूद-ए-शो’ल:-ए-आवाज़ है

पैकर-ए-`उश्शाक़, साज़-ए-तालि`-ए-नासाज़ है
नाल: गोया गर्दिश-ए-सय्यार: की आवाज़ है

दस्तगाह-ए-दीद:-ए-ख़ूँबार-ए-मजनूँ देखना
यक-बयाबाँ जल्व:-ए-गुल फ़र्श-ए-पा-अँदाज़ है

चश्म-ए-ख़ूबाँ मै-फ़रोश-ए-नश्श:-ज़ार-ए-नाज़ है
सुर्म: गोया मौज-ए-दूद-ए-शो’ल:-ए-आवाज़ है

है सरीर-ए-ख़ामह रेज़िशहा-ए-इसतिक़बाल-ए-नाज़
नामह ख़ुद पैग़ाम को बाल-ओ-पर-ए-परवाज़ है

सरनविश्त-ए-इज़्तिराब-अनजामी-ए-उल्फ़त न पूछ
नाल-ए-ख़ामह ख़ार-ख़ार-ए-ख़ातिर-ए-आग़ाज़ है

शोख़ी-ए-इज़हार ग़ैर अज़ वहशत-ए-मजनूँ नहीं
लैला-ए-मा`नी असद महमिल-निशीन-ए-राज़ है

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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