है आर्मीदगी में निकोहिश बजा मुझे
सुबह-ए-वतन है ख़न्द:-ए-दन्दांनुमा मुझे
ढूंडे है उस मुग़न्नि-ए-आतिश नफ़स को जी
जिस की सदा हो जल्व:-ए-बर्क़-ए-फ़ना मुझे
मस्तान: तय करूँ हूँ रह-ए-वादी-ए-ख़याल
ता बाज़गश्त से न रहे मुद्द`आ मुझे
करता है बसकि बाग़ में तू बेहिजाबियाँ
आने लगी है नकहत-ए-गुल से हया मुझे
खुलता किसी प क्यों, मिरे दिल का मु`आमिल:
शे`रों के इन्तिख़ाब ने रुस्वा किया मुझे
वाँ रंगहा ब पर्द:-ए-तदबीर हैं हनोज़
याँ शो’ल:-ए-चराग़ है बर्ग-ए-हिना मुझे
परवाज़हा नियाज़-ए-तमाशा-ए-हुस्न-ए-दोस्त
बाल-ए-कुशाद: है निगह-ए-आश्ना मुझे
अज़-ख़ुद-गुज़शतगी में ख़मोशी प हर्फ़ है
मौज-ए-ग़ुबार-ए-सुर्म: हुई है सदा मुझे
ता चन्द पसत-फ़ितरती-ए-तब`-ए-आरज़ू
यारब मिले बुलन्दी-ए-दस्त-ए-दु`आ मुझे
मैं ने जुनूँ से की जो असद इलतिमास-ए-रंग
ख़ून-ए-जिगर में एक ही ग़ोतह दिया मुझे
-मिर्ज़ा ग़ालिब
सुबह-ए-वतन है ख़न्द:-ए-दन्दांनुमा मुझे
ढूंडे है उस मुग़न्नि-ए-आतिश नफ़स को जी
जिस की सदा हो जल्व:-ए-बर्क़-ए-फ़ना मुझे
मस्तान: तय करूँ हूँ रह-ए-वादी-ए-ख़याल
ता बाज़गश्त से न रहे मुद्द`आ मुझे
करता है बसकि बाग़ में तू बेहिजाबियाँ
आने लगी है नकहत-ए-गुल से हया मुझे
खुलता किसी प क्यों, मिरे दिल का मु`आमिल:
शे`रों के इन्तिख़ाब ने रुस्वा किया मुझे
वाँ रंगहा ब पर्द:-ए-तदबीर हैं हनोज़
याँ शो’ल:-ए-चराग़ है बर्ग-ए-हिना मुझे
परवाज़हा नियाज़-ए-तमाशा-ए-हुस्न-ए-दोस्त
बाल-ए-कुशाद: है निगह-ए-आश्ना मुझे
अज़-ख़ुद-गुज़शतगी में ख़मोशी प हर्फ़ है
मौज-ए-ग़ुबार-ए-सुर्म: हुई है सदा मुझे
ता चन्द पसत-फ़ितरती-ए-तब`-ए-आरज़ू
यारब मिले बुलन्दी-ए-दस्त-ए-दु`आ मुझे
मैं ने जुनूँ से की जो असद इलतिमास-ए-रंग
ख़ून-ए-जिगर में एक ही ग़ोतह दिया मुझे
-मिर्ज़ा ग़ालिब
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