Thursday, July 18, 2013

153-रफ़्तार-ए-`उम्र

रफ़्तार-ए-`उम्र, क़त`-ए-रह-ए-इज़्तिराब है
इस साल के हिसाब को, बर्क़ आफ़ताब है

मीना-ए-मै है सर्व, निशात-ए-बहार से
बाल-ए-तदर्व जल्व:-ए-मौज-ए-शराब है

ज़ख़्मी हुआ है पाश्न: पा-ए-सबात का
ने भागने की गौं, न इक़ामत की ताब है

जादाद-ए-बाद:-नोशी-ए-रिन्दाँ है शश जिहत
ग़ाफ़िल गुमाँ करे है, कि गेती ख़राब है

नज़्ज़ार: क्या हरीफ़ हो, उस बर्क़-ए-हुस्न का
जोश-ए-बहार, जल्वे को जिस के नक़ाब है

मैं ना-मुराद दिल की तसल्ली को क्या करूँ
माना, कि तेरी रुख़ से निगह कामयाब है

गुज़रा असद, मसर्रत-ए-पैग़ाम-ए-यार से
क़ासिद प मुझ को रश्क-ए-सवाल-ओ-जवाब है

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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