देखना क़िस्मत, कि आप अपने प रश्क आ जाए-है
मैं उसे देख़ूँ, भला कब मुझसे देखा जाए-है
हाथ धो दिल से, यही गर्मी गर अन्देशे में है
आबगीन:, तुन्दी-ए-सहबा से पिघला जाए-है
ग़ैर को, यारब वह क्योंकर मन`-ए-गुस्ताख़ी करे
गर हया भी उसको आती है, तो शरमा जाए-है
शौक़ को यह लत, कि हरदम नाल: खेंचे जाइये
दिल की वह हालत, कि दम लेने से घबरा जाए-है
दूर चश्म-ए-बद, तिरी बज़्म-ए-तरब से, वाह, वाह
नग़म: हो जाता है, वाँ गर नाल: मेरा जाए-है
गरचे: है तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल, पर्द:-दार-ए-राज़-ए-`इश्क़
पर हम ऐसे खोए-जाते हैं, कि वह पा जाए-है
उस की बज़्म-आराइयाँ सुन कर, दिल-ए-रंजूर, याँ
मिस्ल-ए-नक़्श-ए-मुद्द`आ-ए-ग़ैर बैठा जाए-है
हो के `आशिक़, वह परीरुख़ और नाज़ुक बन गया
रंग खुलता जाए-है, जितना कि उड़ता जाए-है
नक़्श को उस के, मुसव्विर पर भी क्या क्या नाज़ हैं
खेंचता है जिस क़दर, उतना ही खिंचता जाए-है
साय: मेरा, मुझसे मिस्ल-ए-दूद भागे है, असद
पास मुझ आतिश ब जाँ के, किस से ठहरा जाए-है
-मिर्ज़ा ग़ालिब
मैं उसे देख़ूँ, भला कब मुझसे देखा जाए-है
हाथ धो दिल से, यही गर्मी गर अन्देशे में है
आबगीन:, तुन्दी-ए-सहबा से पिघला जाए-है
ग़ैर को, यारब वह क्योंकर मन`-ए-गुस्ताख़ी करे
गर हया भी उसको आती है, तो शरमा जाए-है
शौक़ को यह लत, कि हरदम नाल: खेंचे जाइये
दिल की वह हालत, कि दम लेने से घबरा जाए-है
दूर चश्म-ए-बद, तिरी बज़्म-ए-तरब से, वाह, वाह
नग़म: हो जाता है, वाँ गर नाल: मेरा जाए-है
गरचे: है तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल, पर्द:-दार-ए-राज़-ए-`इश्क़
पर हम ऐसे खोए-जाते हैं, कि वह पा जाए-है
उस की बज़्म-आराइयाँ सुन कर, दिल-ए-रंजूर, याँ
मिस्ल-ए-नक़्श-ए-मुद्द`आ-ए-ग़ैर बैठा जाए-है
हो के `आशिक़, वह परीरुख़ और नाज़ुक बन गया
रंग खुलता जाए-है, जितना कि उड़ता जाए-है
नक़्श को उस के, मुसव्विर पर भी क्या क्या नाज़ हैं
खेंचता है जिस क़दर, उतना ही खिंचता जाए-है
साय: मेरा, मुझसे मिस्ल-ए-दूद भागे है, असद
पास मुझ आतिश ब जाँ के, किस से ठहरा जाए-है
-मिर्ज़ा ग़ालिब
No comments:
Post a Comment