Thursday, July 18, 2013

155-गर्म-ए-फ़रियाद रखा

गर्म-ए-फ़रियाद रखा, शक्ल-ए-निहाली ने मुझे
तब अमाँ हिज्र में दी, बर्द-ए-लियाली ने मुझे

निस्य:-ओ-नक़द-ए-दो-`आलम की हक़ीक़त मा`लूम
ले लिया मुझसे, मिरी हिम्मत-ए-`आली ने मुझे

कसरत आराई-ए-वहदत, है परस्त:री-ए-वहम
कर दिया काफ़िर, इन असनाम-ए-ख़याली ने मुझे

हवस-ए-गुल के तसव्वुर में भी खटका न रहा
`अजब आराम दिया, बेपर-ओ-बाली ने मुझे

ज़िन्दगी में भी रहा ज़ौक़-ए-फ़ना का मारा
नश्श: बख़शा ग़ज़ब उस साग़र-ए-ख़ाली ने मुझे

बसकि थी फ़स्ल-ए-ख़िज़ान-ए-चमनिसतान-ए-सुख़न
रंग-ए-शुहरत न दिया ताज़:-ख़याली ने मुझे

जल्व:-ए-ख़ुर से फ़ना होती है शबनम ग़ालिब
खो दिया सतवत-ए-असमा-ए-जलाली ने मुझे

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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