Thursday, July 18, 2013

160-तस्कीं को हम न रोएं

तस्कीं को हम न रोएं, जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले
हूरान-ए-ख़ुल्द में तिरी सूरत मगर मिले

अपनी गली में, मुझको न कर दफ़्न, बा`द-ए-क़त्ल
मेरे पते से ख़ल्क़ को क्यों तेरा घर मिले

साक़ीगरी की शर्म करो आज, वर्न: हम
हर शब पिया ही करते हैं मै, जिस क़दर मिले

तुझ से तो कुछ कलाम नहीं, लेकिन अय नदीम
मेरा सलाम कहियो, अगर नाम:बर मिले

तुम को भी हम दिखाएं, कि मजनूँ ने क्या किया
फ़ुर्सत कशाकश-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ से गर मिले

लाज़िम नहीं, कि ख़िज़्र की हम पैरवी करें
जाना कि इक बुज़ुर्ग हमें हम-सफ़र मिले

अय साकिनान-ए-कूच:-ए-दिलदार, देखना
तुम को कहीं जो ग़ालिब-ए-आशुफ़्त:-सर मिले

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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