Thursday, July 18, 2013

162-कोई उम्मीद बर नहीं आती

कोई उम्मीद बर नहीं आती
कोई सूरत नज़र नहीं आती

मौत का एक दिन मु`अइयन है
नींद क्यों रात भर नहीं आती

आगे आती थी हाल-ए-दिल प हँसी
अब किसी बात पर नहीं आती

जानता हूँ सवाब-ए-ता`अत-ओ-ज़ुहद
पर तबी`अत इधर नहीं आती

है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँ
वर्न: क्या बात कर नहीं आती

क्यों न चीख़ूँ कि याद करते हैं
मिरी आवाज़ गर नहीं आती

दाग़-ए-दिल गर नज़र नहीं आता
बू भी अय चार:गर नहीं आती

हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती

मरते हैं आरज़ू में मरने की
मौत आती है, पर नहीं आती

का`बे किस मुंह से जाओगे ग़ालिब
शर्म तुम को मगर नहीं आती

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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