Thursday, July 18, 2013

163-दिल-ए-नादाँ

दिल-ए-नादाँ, तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है

हम हैं मुश्ताक़ और वह बेज़ार
या इलाही, यह माजरा क्या है

मैं भी मुंह में ज़बान रखता हूँ
काश, पूछो कि मुद्द`आ क्या है

जब कि तुझ बिन नहीं कोई मौजूद
फिर यह हँगाम: अय ख़ुदा क्या है

यह परी-चेहर: लोग कैसे हैं
ग़मज़:-ओ-`इशव:-ओ-अदा क्या है

शिकन-ए-ज़ुल्फ़-ए-`अँबरीं क्यों है
निगह-ए-चश्म-ए-सुर्म:-सा क्या है

सब्ज़:-ओ-गुल कहाँ से आए हैं
अब्र क्या चीज़ है, हवा क्या है

हम को उनसे, वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते, वफ़ा क्या है

हाँ भला कर, तिरा भला होगा
और दरवेश की सदा क्या है

जान तुम पर निसार करता हूँ
मैं नहीं जानता, दु`आ क्या है

मैं ने माना कि कुछ नहीं ग़ालिब
मुफ़्त हाथ आए, तो बुरा क्या है

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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