कहते तो हो तुम सब, कि बुत-ए-ग़ालिय:-मो आए
यक मर्तब: घबरा के कहो कोई कि, वो आए
हूँ कशमकश-ए-नज़`अ में, हाँ जज़्ब-ए-मुहब्बत
कुछ कह न सकूँ पर, वह मिरे पूछने को आए
है सा`इक़:-ओ-शो’ल:-ओ-सीमाब का `आलम
आना ही समझ में मिरी आता नहीं, गो आए
ज़ाहिर है, कि घबरा के न भागेंगे नकीरें
हाँ, मुंह से मगर बाद:-ए-दोशीन: की बो आए
जल्लाद से डरते हैं, न वा`इज़ से झगड़ते
हम समझे हुए हैं उसे, जिस भेस में जो आए
हाँ अहल-ए-तलब, कौन सुने ता`न:-ए-नायाफ़्त
देखा, कि वह मिलता नहीं, अपने ही को खो आए
अपना नहीं वह शेव:, कि आराम से बैठें
उस दर प नहीं बार, तो का`बे ही को हो आए
की हमनफ़सों ने असर-ए-गिरिय: में तक़रीर
अच्छे रहे आप उससे, मगर मुझ को डुबो आए
उस अंजुमन-ए-नाज़ की क्या बात है, ग़ालिब
हम भी गए वाँ, और तिरी तक़दीर को रो आए
-मिर्ज़ा ग़ालिब
यक मर्तब: घबरा के कहो कोई कि, वो आए
हूँ कशमकश-ए-नज़`अ में, हाँ जज़्ब-ए-मुहब्बत
कुछ कह न सकूँ पर, वह मिरे पूछने को आए
है सा`इक़:-ओ-शो’ल:-ओ-सीमाब का `आलम
आना ही समझ में मिरी आता नहीं, गो आए
ज़ाहिर है, कि घबरा के न भागेंगे नकीरें
हाँ, मुंह से मगर बाद:-ए-दोशीन: की बो आए
जल्लाद से डरते हैं, न वा`इज़ से झगड़ते
हम समझे हुए हैं उसे, जिस भेस में जो आए
हाँ अहल-ए-तलब, कौन सुने ता`न:-ए-नायाफ़्त
देखा, कि वह मिलता नहीं, अपने ही को खो आए
अपना नहीं वह शेव:, कि आराम से बैठें
उस दर प नहीं बार, तो का`बे ही को हो आए
की हमनफ़सों ने असर-ए-गिरिय: में तक़रीर
अच्छे रहे आप उससे, मगर मुझ को डुबो आए
उस अंजुमन-ए-नाज़ की क्या बात है, ग़ालिब
हम भी गए वाँ, और तिरी तक़दीर को रो आए
-मिर्ज़ा ग़ालिब
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