Thursday, July 18, 2013

166-जुनूँ तोहमत-कश-ए-तस्कीं

जुनूँ तोहमत-कश-ए-तस्कीं न हो, गर शादमानी की
नमक-पाश-ए-ख़राश-ए-दिल है लज़्ज़त ज़िन्दगानी की

कशाकशहा-ए-हस्ती से करे क्या स`ई-ए-आज़ादी
हुई ज़ंजीर, मौज-ए-आब को फ़ुर्सत रवानी की

पस अज़ मुर्दन भी, दीवान: ज़ियारत-गाह-ए-तिफ़लाँ है
शरार-ए-संग ने तुर्बत प मेरी गुल-फ़िशानी की

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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