Thursday, July 18, 2013

167-निकोहिश है सज़ा

निकोहिश है सज़ा, फ़रयादी-ए-बे-दाद-ए-दिलबर की
मबादा ख़न्द:-ए-दन्दां-नुमा हो सुबह महशर की

रग-ए-लैला को ख़ाक-ए-दश्त-ए-मजनूँ, रेशगी बख़्शे
अगर बोवे बजा-ए-दान: देह्क़ाँ, नोक नश्तर की

पर-ए-परवान:, शायद बादबान-ए-किश्ती-ए-मै था
हुई मजलिस की गर्मी से रवानी दौर-ए-साग़र की

करूँ बेदाद-ए-ज़ौक़-ए-पर-फ़िशानी `अर्ज़, क्या क़ुदरत
कि ताक़त उड़ गई, उड़ने से पहले, मेरे शहपर की

कहाँ तक रोऊँ उस के ख़ेमे के पीछे, क़यामत है
मिरी क़िस्मत में, यारब क्या न थी दीवार पत्थर की

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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