जो न नक़द-ए-दाग़-ए-दिल की, करे शो’ल: पासबानी
तो फ़सुर्दगी निहाँ है, ब कमीन-ए-बेज़बानी
मुझे उस से क्या तवक़्क़ो`अ ब ज़मान:-ए-जवानी
कभी कोदकी में जिसने, न सुनी मिरी कहानी
यूं ही दुख किसी को देना नहीं ख़ूब, वर्न: कहता
कि मिरे `अदू को, यारब, मिले मेरी ज़िन्दगानी
-मिर्ज़ा ग़ालिब
तो फ़सुर्दगी निहाँ है, ब कमीन-ए-बेज़बानी
मुझे उस से क्या तवक़्क़ो`अ ब ज़मान:-ए-जवानी
कभी कोदकी में जिसने, न सुनी मिरी कहानी
यूं ही दुख किसी को देना नहीं ख़ूब, वर्न: कहता
कि मिरे `अदू को, यारब, मिले मेरी ज़िन्दगानी
-मिर्ज़ा ग़ालिब
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