Thursday, July 18, 2013

169-जो न नक़द-ए-दाग़-ए-दिल

जो न नक़द-ए-दाग़-ए-दिल की, करे शो’ल: पासबानी
तो फ़सुर्दगी निहाँ है, ब कमीन-ए-बेज़बानी

मुझे उस से क्या तवक़्क़ो`अ ब ज़मान:-ए-जवानी
कभी कोदकी में जिसने, न सुनी मिरी कहानी

यूं ही दुख किसी को देना नहीं ख़ूब, वर्न: कहता
कि मिरे `अदू को, यारब, मिले मेरी ज़िन्दगानी

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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