Thursday, July 18, 2013

171-आ कि मिरी जान को

आ, कि मिरी जान को क़रार नहीं है
ताक़त-ए-बे-दाद-ए-इंतज़ार नहीं है

देते हैं जन्नत, हयात-ए-दह्‌र के बदले
नश्श: ब अँदाज़:-ए-ख़ुमार नहीं है

गिरिय: निकाले है तेरी बज़्म से, मुझको
हाए, कि रोने प इख़्तियार नहीं है

हम से, `अबस है गुमान-ए-रंजिश-ए-ख़ातिर
ख़ाक में `उश्शाक़ की ग़ुबार नहीं है

दिल से उठा लुत्फ़-ए-जल्व:हा-ए-म`आनी
ग़ैर-ए-गुल, आईन:-ए-बहार नहीं है

क़त्ल का मेरे किया है `अहद तो बारे
वाए, अगर `अहद उसतुवार नहीं है

तू ने क़सम मैकशी की खाई है, ग़ालिब
तेरी क़सम का कुछ ए`तिबार नहीं है

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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