Thursday, July 18, 2013

172-हुजूम-ए-ग़म से याँ तक

हुजूम-ए-ग़म से याँ तक सरनिगूनी मुझ को हासिल है
कि तार-ए-दामन-ओ-तार-ए-नज़र में फ़र्क़ मुश्किल है

रफ़ू-ए-ज़ख़्म से मतलब है लज़्ज़त ज़ख़्म-ए-सोज़न की
समझयो मत, कि पास-ए-दर्द से, दीवान: ग़ाफ़िल है

वह गुल जिस गुलसिताँ में जल्व:-फ़रमाई करे, ग़ालिब
चटकना ग़ुन्च:-ए-गुल का, सदा-ए-ख़न्द:-ए-दिल है

-मिर्ज़ा ग़ालिब

No comments:

Post a Comment