Thursday, July 18, 2013

173-पा ब दामन हो रहा हूँ

पा ब दामन हो रहा हूँ, बसकि मैं सहरा-नवर्द
ख़ार-ए-पा हैं, जौहर-ए-आईन:-ए-ज़ानू मुझे

देखना हालत मिरे दिल की, हमआग़ोशी के वक़्त
है निगाह-ए-आश्ना, तेरा सर-ए-हर मू, मुझे

हूँ सरापा साज़-ए-आहँग-ए-शिकायत, कुछ न पूछ
है यही बेहतर, कि लोगों में न छेड़े तू मुझे

बाइस-ए-वामान्दगी है `उम्र-ए-फ़ुर्सत-जू मुझे
कर दिया है पा ब ज़ंजीर-ए-रम-ए-आहू मुझे

ख़ाक-ए-फ़ुर्सत बर सर-ए-ज़ौक़-ए-फ़ना अय इंतज़ार
है ग़ुबार-ए-शीश:-ए-सा`अत रम-ए-आहू मुझे

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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