Wednesday, July 17, 2013

231-शबनम ब गुल-ए-लाल:

शबनम ब गुल-ए-लाल: न ख़ाली ज़ अदा है
दाग़-ए-दिल-ए-बेदर्द नज़र गाह-ए-हया है

दिल ख़ूँ-शुद:-ए-कशमकश-ए-हसरत-ए-दीदार
आईन: ब दस्त-ए-बुत-ए-बदमस्त हिना है

शो`ले से न होती, हवस-ए-शो’ल: ने जो की
जी किस क़दर अफ़सुर्दगी-ए-दिल प जला है

तिम्साल में तेरी, है वह शोख़ी, कि बसद ज़ौक़
आईन: ब अँदाज़-ए-गुल, आग़ोश-कुशा है

क़ुमरी कफ़-ए-ख़ाकिस्तर-ओ-बुलबुल क़फ़स-ए-रंग
अय नाल:, निशान-ए-जिगर-ए-सोख़्त: क्या है

ख़ू ने तिरी अफ़सुर्द: किया, वहशत-ए-दिल को
मा`शूक़ी-ओ-बेहौसलगी तुरफ़: बला है

मजबूरी-ओ-दा`वा-ए-गिरफ़्तारि-ए-उल्फ़त
दस्त-ए-तह-ए-संग-आमद: पैमान-ए-वफ़ा है

मा`लूम हुआ हाल-ए-शहीदान-ए-गुजश्त:
तेग़-ए-सितम आईन:-ए-तस्वीर-नुमा है

अय परतव-ए-ख़ुर्शीद-ए-जहाँ-ताब, इधर भी
साये की तरह हम प `अजब वक़्त पड़ा है

नाकरद: गुनाहों की भी हसरत की मिले दाद
यारब, अगर इन करद: गुनाहों की सज़ा है

बेगानगी-ए-ख़ल्क़ से बेदिल न हो, ग़ालिब
कोई नहीं तेरा, तो मिरी जान, ख़ुदा है

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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