Thursday, July 18, 2013

128-रहिये अब ऐसी जगह चल कर

रहिये अब ऐसी जगह चल कर, जहाँ कोई न हो
हमसुख़न कोई न हो और हम ज़बाँ कोई न हो

बे-दर-ओ-दीवार सा इक घर बनाया चाहिये
कोई हमसाय: न हो और पासबाँ कोई न हो

पड़िये गर बीमार, तो कोई न हो तीमारदार
और अगर मर जाइये, तो नौह: ख़्वाँ कोई न हो

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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