Thursday, July 18, 2013

130-है सब्ज़:-ज़ार हर दर-ओ-दीवार

है सब्ज़:-ज़ार हर दर-ओ-दीवार-ए-ग़मकद:
जिस की बहार यह हो, फिर उस की ख़िज़ाँ न पूछ

नाचार बेकसी की भी हसरत उठाइये
दुश्वारी-ए-रह-ओ-सितम-ए-हमरहाँ न पूछ

जुज़ दिल सुराग़-ए-दर्द ब दिल-ख़ुफ़तगां न पूछ
आईन: `अर्ज़ कर ख़त-ओ-ख़ाल-ए-बयाँ न पूछ

हिन्दोस्तान साय:-ए-गुल पा-ए-तख़त था
जाह-ओ-जलाल-ए-`अहद-ए-विसाल-ए-बुताँ न पूछ

ग़फ़लत-मता`-ए-कफ़फ़ह-ए-मीज़ान-ए-`अदल हूँ
यारब हिसाब-ए-सख़ती-ए-ख़्वाब-ए-गिराँ न पूछ

हर दाग़-ए-ताज़: यक दिल-ए-दाग़-इंतज़ार है
`अर्ज़-ए-फ़ज़ा-ए-सीन:-ए-दर्द-इम्तिहाँ न पूछ

कहता था कल वह महरम-ए-राज़ अपने से कि आह
दर्द-ए-जुदाई-ए-असदुल्लाह ख़ाँ न पूछ

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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