Thursday, July 18, 2013

131-सद जल्व: रू ब रू है

सद जल्व: रू ब रू है जो मिश़गाँ उठाइये
ताक़त कहाँ, कि दीद का एहसाँ उठाइये

है संग पर, बरात-ए-म`आश-ए-जुनून-ए-`इश्क़
या`नी हनोज़ मिन्नत-ए-तिफ़्लाँ उठाइये

दीवार, बार-ए-मिन्नत-ए-मज़दूर से, है ख़म
अय ख़ानमाँ-ख़राब, न एहसाँ उठाइये

या मेरे ज़ख़्म-ए-रश्क को रुस्वा न कीजिये
या पर्द:-ए-तबस्सुम-ए-पिन्हाँ उठाइये

हस्ती फ़रेब-नाम:-ए-मौज-ए-सराब है
यक `उम्र नाज़-ए-शोख़ी-ए-`उन्वाँ उठाइये

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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