मस्जिद के ज़ेर-ए-साय:, ख़राबात चाहिये
भौं पास आँख, क़िबल:-ए-हाजात चाहिये
`आशिक़ हुए-हैं आप भी, एक और शख़्स पर
आख़िर सितम की कुछ तो मुकाफ़ात चाहिये
दे दाद, अय फ़लक, दिल-ए-हसरत परस्त की
हाँ कुछ न कुछ तलाफ़ी-ए-माफ़ात चाहिये
सीखे हैं महरुख़ों के लिये हम मुसव्विरी
तक़रीब कुछ तो बहर-ए-मुलाक़ात चाहिये
मै से ग़रज़ निशात है किस रूसियाह को
इक गून: बेख़ुदी मुझे दिन रात चाहिये
है रंग-ए-लाल:-ओ-गुल-ओ-नसरीं, जुदा जुदा
हर रंग में बहार का इस्बात चाहिये
सर पा-ए-ख़ुम प चाहिये हँगाम-ए-बेख़ुदी
रू सू-ए-क़िबल: वक़्त-ए-मुनाजात चाहिये
या`नी ब हस्ब-ए-गर्दिश-ए-पैमान:-ए-सिफ़ात
`आरिफ़ हमेश: मस्त-ए-मै-ए-ज़ात चाहिये
नश्व-ओ-नुमा है अस्ल से, ग़ालिब फ़ुरू`अ को
ख़ामोशी ही से निकले है, जो बात चाहिये
-मिर्ज़ा ग़ालिब
भौं पास आँख, क़िबल:-ए-हाजात चाहिये
`आशिक़ हुए-हैं आप भी, एक और शख़्स पर
आख़िर सितम की कुछ तो मुकाफ़ात चाहिये
दे दाद, अय फ़लक, दिल-ए-हसरत परस्त की
हाँ कुछ न कुछ तलाफ़ी-ए-माफ़ात चाहिये
सीखे हैं महरुख़ों के लिये हम मुसव्विरी
तक़रीब कुछ तो बहर-ए-मुलाक़ात चाहिये
मै से ग़रज़ निशात है किस रूसियाह को
इक गून: बेख़ुदी मुझे दिन रात चाहिये
है रंग-ए-लाल:-ओ-गुल-ओ-नसरीं, जुदा जुदा
हर रंग में बहार का इस्बात चाहिये
सर पा-ए-ख़ुम प चाहिये हँगाम-ए-बेख़ुदी
रू सू-ए-क़िबल: वक़्त-ए-मुनाजात चाहिये
या`नी ब हस्ब-ए-गर्दिश-ए-पैमान:-ए-सिफ़ात
`आरिफ़ हमेश: मस्त-ए-मै-ए-ज़ात चाहिये
नश्व-ओ-नुमा है अस्ल से, ग़ालिब फ़ुरू`अ को
ख़ामोशी ही से निकले है, जो बात चाहिये
-मिर्ज़ा ग़ालिब
No comments:
Post a Comment