Thursday, July 18, 2013

190-चाहिये अच्छों को जितना

चाहिये अच्छों को जितना चाहिये
यह अगर चाहें, तो फिर क्या चाहिये

सोहबत-ए-रिन्दाँ से वाजिब है हज़र
जा-ए-मै अपने को खेंचा चाहिये

चाहने को तेरे क्या समझा था दिल
बारे, अब उस से भी समझा चाहिये

चाक मत कर जैब बे-अय्याम-ए-गुल
कुछ उधर का भी इशारा चाहिये

दोस्ती का पर्द:, है बेगानगी
मुंह छुपाना हम से छोड़ा चाहिये

दुश्मनी ने मेरी खोया ग़ैर को
किस क़दर दुश्मन है, देखा चाहिये

अपनी रुस्वाई में क्या चलती है स`य
यार ही हँगाम:-आरा चाहिये

मुनहसिर मरने प हो, जिस की उमीद
नाउमीदी उस की देखा चाहिये

ग़ाफ़िल, उन मह तल`अतों के वास्ते
चाहने-वाला भी अच्छा चाहिये

चाहते हैं ख़ूबरूओं को असद
आप की सूरत तो देखा चाहिये

-मिर्ज़ा ग़ालिब

No comments:

Post a Comment