Thursday, July 18, 2013

191-हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है

हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायाँ मुझसे
मेरी रफ़्तार से भागे है, बयाबाँ मुझसे

दर्स-ए-`उन्वान-ए-तमाशा, ब तग़ाफ़ुल ख़ुश्तर
है निगह रिश्त:-ए-शीराज़:-ए-मिश़गाँ मुझसे

वहशत-ए-आतिश-ए-दिल से, शब-ए-तन्हाई में
सूरत-ए-दूद, रहा साय: गुरेज़ाँ मुझसे

ग़म-ए-`उश्शाक़ न हो, सादगी-आमोज़-ए-बुताँ
किस क़दर ख़ान:-ए-आईन: है वीराँ मुझसे

असर-ए-आबल: से जाद:-ए-सहरा-ए-जुनूँ
सूरत-ए-रिश्त:-ए-गौहर है, चराग़ां मुझसे

बेख़ुदी बिस्तर-ए-तम्हीद-ए-फ़राग़त हूजो
पुर है साए-की तरह, मेरा शबिस्ताँ मुझसे

शौक़-ए-दीदार में, गर तू मुझे गर्दन मारे
हो निगह, मिस्ल-ए-गुल-ए-शम`अ, परीशाँ मुझसे

बेकसीहा-ए-शब-ए-हिज्र की वहशत, हय, हय
साय: ख़ुर्शीद-ए-क़यामत में है पिन्हाँ मुझसे

गर्दिश-ए-साग़र-ए-सद-जल्व:-ए-रंगीं, तुझ से
आइन:दारी-ए-यक दीद:-ए-हैराँ, मुझसे

निगह-ए-गर्म से इक आग टपकती है, असद
है चराग़ां ख़स-ओ-ख़ाशाक-ए-गुलिस्ताँ मुझसे

बस्तन-ए-`अहद-ए-मुहब्बत हम: ना-दानी था
चश्म-ए-नकशूदह रहा `उक़दह-ए-पैमाँ मुझसे

आतिश-अफ़रोज़ी-ए-यक शो’ल:-ए-ईमा तुझ से
चश्मक-आराई-ए-सद-शहर चराग़ां मुझसे

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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