चाक की ख़्वाहिश, अगर वहशत ब `उरयानी करे
सुबह के मानिन्द, ज़ख़्म-ए-दिल गरीबानी करे
जल्वे का तेरे वह `आलम है, कि गर कीजे ख़याल
दीद:-ए-दिल को ज़ियारत गाह-ए-हैरानी करे
है शिकस्तन से भी दिल नौमीद, यारब, कब तलक
आब-गीन: कोह पर `अर्ज़-ए-गिराँ जानी करे
मैकद: गर चश्म-ए-मस्त-ए-नाज़ से पावे शिकस्त
मू-ए-शीश: दीद:-ए-साग़र की मिश.गानी करे
ख़त्त-ए-`आरिज़, से लिखा है ज़ुल्फ़ को उल्फ़त ने `अहद
यक-क़लम मंज़ूर है, जो कुछ परीशानी करे
-मिर्ज़ा ग़ालिब
सुबह के मानिन्द, ज़ख़्म-ए-दिल गरीबानी करे
जल्वे का तेरे वह `आलम है, कि गर कीजे ख़याल
दीद:-ए-दिल को ज़ियारत गाह-ए-हैरानी करे
है शिकस्तन से भी दिल नौमीद, यारब, कब तलक
आब-गीन: कोह पर `अर्ज़-ए-गिराँ जानी करे
मैकद: गर चश्म-ए-मस्त-ए-नाज़ से पावे शिकस्त
मू-ए-शीश: दीद:-ए-साग़र की मिश.गानी करे
ख़त्त-ए-`आरिज़, से लिखा है ज़ुल्फ़ को उल्फ़त ने `अहद
यक-क़लम मंज़ूर है, जो कुछ परीशानी करे
-मिर्ज़ा ग़ालिब
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