Thursday, July 18, 2013

194-वह आ के ख़्वाब में

वह आ के ख़्वाब में, तस्कीन-ए-इज़्तिराब तो दे
वले मुझे तपिश-ए-दिल मजाल-ए-ख़्वाब तो दे

करे है क़त्ल, लगावट में तेरा रो देना
तिरी तरह कोई तेग़-ए-निगह को आब तो दे

दिखा के जुंबिश-ए-लब ही, तमाम कर हम को
न दे जो बोस:, तो मुंह से कहीं जवाब तो दे

पिला दे ओक से, साक़ी जो हम से नफ़रत है
पियाल: गर नहीं देता, न दे, शराब तो दे

असद, ख़ुशी से मिरे हाथ पाँव फूल गए
कहा जो उसने, ज़रा मेरे पाँव दाब तो दे

यह कौन कहवे है आबाद कर हमें लेकिन
कभी ज़मान: मुराद-ए-दिल-ए-ख़राब तो दे

-मिर्ज़ा ग़ालिब

No comments:

Post a Comment