ख़तर है, रिश्त:-ए-उल्फ़त रग-ए-गर्दन न हो जावे
ग़ुरूर-ए-दोस्ती आफ़त है, तू दुश्मन न हो जावे
समझ इस फ़स्ल में कोताही-ए-नश्व-ओ-नुमा, ग़ालिब
अगर गुल, सर्व के क़ामत प, पैराहन न हो जावे
-मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ुरूर-ए-दोस्ती आफ़त है, तू दुश्मन न हो जावे
समझ इस फ़स्ल में कोताही-ए-नश्व-ओ-नुमा, ग़ालिब
अगर गुल, सर्व के क़ामत प, पैराहन न हो जावे
-मिर्ज़ा ग़ालिब
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