Thursday, July 18, 2013

197-फ़रियाद की कोई लै नहीं है

फ़रियाद की कोई लै नहीं है
नाल: पाबन्द-ए-नै नहीं है

क्यों बोते हैं बाग़बान तूंबे
गर बाग़ गदा-ए-मै नहीं है

हरचन्द हर एक शै में तू है
पर तुझसी कोई शै नहीं है

हाँ, खाइयो मत फ़रेब-ए-हस्ती
हरचन्द कहें, कि है, नहीं है

शादी से गुज़र, कि ग़म न रहवे
उर्दी जो न हो, तो दै नहीं है

क्यों रद्द-ए-क़दह करे है, ज़ाहिद
मै है, यह मगस की क़ै नहीं है

हस्ती है, न कुछ `अदम है, ग़ालिब
आख़िर तू क्या है, अय, नहीं है

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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