Thursday, July 18, 2013

200-करे है बाद: तिरे लब से

करे है बाद: तिरे लब से कस्ब-ए-रंग-ए-फ़रोग़
ख़त-ए-पियाल: सरासर निगाह-ए-गुलचीं है

कभी तो इस दिल-ए-शोरीद: की भी दाद मिले
कि एक `उम्र से हसरत परस्त-ए-बालीं है

बजा है, गर न सुने, नाल:हा-ए-बुलबुल-ए-ज़ार
कि गोश-ए-गुल, नम-ए-शबनम से, पंब: आगीं है

असद है नज़`अ में, चल बेवफ़ा, बरा-ए-ख़ुदा
मक़ाम-ए-तर्क-ए-हिजाब-ओ-विदा`-ए-तमकीं है

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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