Thursday, July 18, 2013

207-ज़-बसकि मश्क़-ए-तमाशा

ज़-बसकि मश्क़-ए-तमाशा जुनूँ`अलामत है
कुशाद-ओ-बस्त-ए-मिश.:, सीली-ए-नदामत है

न जानूँ, क्योंकि मिटे दाग़-ए-ता`न-ए-बद-`अहदी
तुझे कि आइन: भी वरत:-ए-मलामत है

ब पेच-ओ-ताब-ए-हवस, सिल्क-ए-`आफ़ियत मत तोड़
निगाह-ए-`अज्ज़ सर-ए-रिश्त:-ए-सलामत है

वफ़ा मुक़ाबिल-ओ-दा`वा-ए-`इश्क़ बे बुनियाद
जुनून-ए-साख़्त:-ओ-फ़स्ल-ए-गुल क़यामत है

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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