लाग़र इतना हूँ, कि गर तू बज़्म में जा दे मुझे
मेरा ज़िम्म:, देख कर गर कोई बतला दे मुझे
क्या ता`अज्जुब है, जो उसको देख कर आ जाए रहम
वाँ तलक कोई किसी हीले से पहुंचा दे मुझे
मुंह न दिखलावे, न दिखला, पर ब अँदाज़-ए-`इताब
खोल कर पर्द:, ज़रा आँखें ही दिखला दे मुझे
याँ तलक मेरी गिरफ़्तारी से वह ख़ुश है, कि मैं
ज़ुल्फ़ गर बन जाऊँ, तो शाने में उलझा दे मुझे
-मिर्ज़ा ग़ालिब
मेरा ज़िम्म:, देख कर गर कोई बतला दे मुझे
क्या ता`अज्जुब है, जो उसको देख कर आ जाए रहम
वाँ तलक कोई किसी हीले से पहुंचा दे मुझे
मुंह न दिखलावे, न दिखला, पर ब अँदाज़-ए-`इताब
खोल कर पर्द:, ज़रा आँखें ही दिखला दे मुझे
याँ तलक मेरी गिरफ़्तारी से वह ख़ुश है, कि मैं
ज़ुल्फ़ गर बन जाऊँ, तो शाने में उलझा दे मुझे
-मिर्ज़ा ग़ालिब
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