Thursday, July 18, 2013

209-बाज़ीच:-ए-अत्फ़ाल है

बाज़ीच:-ए-अत्फ़ाल है दुनिया, मिरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा, मिरे आगे

इक खेल है औरंग-ए-सुलैमाँ, मिरे नज़दीक
इक बात है ए`जाज़-ए-मसीहा, मिरे आगे

जुज़ नाम, नहीं सूरत-ए-`आलम मुझे मंज़ूर
जुज़ वहम, नहीं हस्ती-ए-अशिया मिरे आगे

होता है निहाँ गर्द में सहरा, मिरे होते
घिसता है जबीं ख़ाक प दरिया, मिरे आगे

मत पूछ कि क्या हाल है मेरा, तिरे पीछे
तू देख कि क्या रंग है तेरा, मिरे आगे

सच कहते हो ख़ुदबीन-ओ-ख़ुदआरा हूँ, न क्यों हूँ
बैठा है बुत-ए-आइन:-सीमा मिरे आगे

फिर देखिये, अँदाज़-ए-गुल-अफ़शानी-ए-गुफ़्तार
रख दे कोई, पैमान:-ए-सहबा मिरे आगे

नफ़रत का गुमाँ गुज़रे है, मैं रश्क से गुज़रा
क्योंकर कहूँ, लो नाम न उन का मिरे आगे

ईमाँ मुझे रोके है, जो खैंचे है मुझे कुफ़्र
का`ब: मिरे पीछे है, कलीसा मिरे आगे

`आशिक़ हूँ, प मा`शूक़ फ़रेबी है मिरा काम
मजनूँ को बुरा कहती है लैला, मिरे आगे

ख़ुश होते हैं, पर वस्ल में यूं मर नहीं जाते
आई शब-ए-हिज्राँ की तमन्ना, मिरे आगे

है मौजज़न इक क़ुल्ज़ुम-ए-ख़ूँ, काश, यही हो
आता है, अभी देखिये, क्या क्या, मिरे आगे

गो हाथ को जुंबिश नहीं, आँखों में तो दम है
रहने दो अभी साग़र-ओ-मीना मिरे आगे

हम पेश:-ओ-हम-मश्रब-ओ-हमराज़ है मेरा
ग़ालिब को बुरा क्यों कहो, अच्छा, मिरे आगे

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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