Thursday, July 18, 2013

211-रोने से और `इश्क़ में

रोने से और `इश्क़ में बेबाक हो गए
धोए-गए-हम इतने, कि बस पाक हो गए

सर्फ़-ए-बहा-ए-मै हुए आलात-ए-मैकशी
थे यह ही दो हिसाब, सो यूं पाक हो गए

रुस्वा-ए-दह्‌र गो हुए-आवारगी से तुम
बारे तबी`अतों के तो चालाक हो गए

कहता है कौन नाल:-ए-बुलबुल को, बेअसर
परदे में गुल के लाख जिगर चाक हो गए

पूछे है क्या वुजूद-ओ-`अदम अहल-ए-शौक़ का
आप अपनी आग के ख़स-ओ-ख़ाशाक हो गए

करने गए थे उससे, तग़ाफ़ुल का हम गिला
की एक ही निगाह, कि बस ख़ाक हो गए

इस रंग से उठाई कल उसने असद की ला`श
दुश्मन भी जिस को देख के ग़मनाक हो गए

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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