Thursday, July 18, 2013

212-नश्श:हा शादाब-ए-रंग

नश्श:हा शादाब-ए-रंग-ओ-साज़हा मस्त-ए-तरब
शीश:-ए-मै सर्व-ए-सब्ज़-ए-जूइबार-ए-नग़म: है

हमनशीं मत कह, कि, बरहमकरनबज़्म-ए-`ऐश-ए-दोस्त
वाँ तो मेरे नाले को भी ए`तिबार-ए-नग़म: है

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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