Thursday, July 18, 2013

221-कोह के हों बार-ए-ख़ातिर

कोह के हों बार-ए-ख़ातिर, गर सदा हो जाइये
बेतक़ल्लुफ़, अय शरार-ए-जस्त:, क्या हो जाइये

बैज़:-आसा, नंग-ए-बाल-ओ-पर है यह कुंज-ए-क़फ़स
अज़ सर-ए-नौ ज़िन्दगी, हो गर रिहा हो जाइये

वुस`अत-ए-मशरब नियाज़-ए-कुलफ़त-ए-वहशत असद
यक-बयाबाँ साय:-ए-बाल-ए-हुमा हो जाइये

-मिर्ज़ा ग़ालिब

No comments:

Post a Comment