कोह के हों बार-ए-ख़ातिर, गर सदा हो जाइये
बेतक़ल्लुफ़, अय शरार-ए-जस्त:, क्या हो जाइये
बैज़:-आसा, नंग-ए-बाल-ओ-पर है यह कुंज-ए-क़फ़स
अज़ सर-ए-नौ ज़िन्दगी, हो गर रिहा हो जाइये
वुस`अत-ए-मशरब नियाज़-ए-कुलफ़त-ए-वहशत असद
यक-बयाबाँ साय:-ए-बाल-ए-हुमा हो जाइये
-मिर्ज़ा ग़ालिब
बेतक़ल्लुफ़, अय शरार-ए-जस्त:, क्या हो जाइये
बैज़:-आसा, नंग-ए-बाल-ओ-पर है यह कुंज-ए-क़फ़स
अज़ सर-ए-नौ ज़िन्दगी, हो गर रिहा हो जाइये
वुस`अत-ए-मशरब नियाज़-ए-कुलफ़त-ए-वहशत असद
यक-बयाबाँ साय:-ए-बाल-ए-हुमा हो जाइये
-मिर्ज़ा ग़ालिब
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